COVID-19 से ठीक हो रहे इंसानों पर अब मानसिक विकार हावी होते जा रहे है, ऐसा ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय में किए गए अध्ययन में देखा गया।
SARS-CoV-2 (कोरोना वायरस) से बचे तीन में से एक संक्रमित ने संक्रमण के छह महीने के भीतर ही तंत्रिका (न्यूरोलॉजिकल) या मनोरोग संबंधित किसी बीमारी की जांच करवाई।
यह बात 2,30,000 से ज्यादा मरीजों के स्वास्थ्य संबंधी रिकॉर्ड देखने के बाद सामने आई।
द लांसेट साइकियाट्री जर्नल में प्रकाशित अध्ययन ने, 14 न्यूरोलॉजिकल और मानसिक स्वास्थ्य विकारों को देखा।
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अध्ययन से जुड़े ऑक्सफोर्ड के विशेषज्ञों का कहना था कि संक्रमण के बाद मानसिक बीमारियों के लक्षणों में वृद्धि की मरीजों के रिकॉर्ड से पुष्टि हुई।
गंभीर संक्रमितों में तो नर्वस सिस्टम से जुड़े विकार जैसे स्ट्रोक और डिमेंशिया भी देखे गए।
हालांकि, कुछ ही पर ऐसी समस्याओं का प्रभाव देखा गया, लेकिन पूरी आबादी की सेहत पर इनका असर बड़ा होने की संभावना है।
COVID-19 के बाद जिन मानसिक समस्याओं से मरीजों को दो-चार होना पड़ा, उनमे चिंता विकार (anxiety disorders), मूड विकार (mood disorders), और अनिद्रा (insomnia) सबसे ज्यादा थे।
लेकिन मस्तिष्क संबंधी रक्तस्राव (brain haemorrhage), इस्केमिक स्ट्रोक और डिमेंशिया जैसी न्यूरोलॉजिकल समस्याओं के मामले कम थे।
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हालांकि, ये समस्याएं सिर्फ गंभीर संक्रमण से ठीक हुए इंसानों तक ही सीमित नहीं थी।
इनमें COVID -19 संक्रमण से अस्पताल में भर्ती 38 फीसदी, गहन देखभाल में 46 फीसदी और दिमागी बुखार (encephalopathy) से ग्रस्त 62 फीसदी मरीज भी शामिल थे।
लेकिन न्यूरोलॉजिकल और मानसिक स्वास्थ्य जटिलताएं सिर्फ कोरोना से प्रभावितों को ही थी, ऐसी धारणा की पुष्टि के लिए उन मरीजों को भी देखा गया, जिन्हें उस दौरान बिना कोरोना के फ्लू और अन्य सांस के संक्रमण हुए थे।
अध्ययन में पता चला कि फ्लू और श्वसन तंत्र में संक्रमण के मुकाबले, COVID-19 संक्रमितों में न्यूरोलॉजिकल और मानसिक स्वास्थ्य का कुल जोखिम क्रमश: 44 फीसदी और 16 फीसदी अधिक था।
नतीजतन, अध्ययन का दावा सही निकला कि COVID-19 ने तंत्रिका और मनोरोग संबंधी विकारों का अधिक खतरा पैदा किया।
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