महानगरों में वाहनों के बढ़ रहे कानफोडू शोरगुल से सामान्य आबादी पर दिल से संबंधित बीमारियों और उनसे होने वाली मौतों का खतरा मंडरा रहा है, ऐसा महामारी विज्ञान के अध्ययनों में पाया गया।
रिहाइशी इलाकों के आसपास रात में होने वाले अधिक ट्रैफ़िक शोर के कारण बच्चों और बड़ों की नींद का टूटना और छोटा हो जाना, चिड़चिड़ाहट, हार्मोन के स्तर में वृद्धि, मस्तिष्क में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस का बढ़ना, याददाश्त और सीखने में कमी आमतौर पर ज्यादा देखा गया।
इन समस्याओं के चलते ऐसी जगह रहने वालो में हाई ब्लड प्रेशर, जलन, सूजन, अंगों में दर्द रहना, ब्लड आर्टरीज में असंतुलन होने से हृदय रोग का खतरा बढ़ रहा है।
Nature Reviews Cardiology में छपे परिवहन शोर-शराबे का शरीर पर दुष्प्रभाव बताने वाले विश्लेषण में, जर्मनी और डेनमार्क के वैज्ञानिकों ने कारों, बसों, ट्रेनों और हवाई जहाजों के शोर का हृदय स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव देखने पर चिंता जताई।
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डब्ल्यूएचओ ने तो यातायात-संबंधी शोर को पश्चिमी यूरोप में सालाना 10 लाख स्वस्थ जीवन वर्ष बेकार करने वाला खतरा भी बताया।
इतना ही नहीं, बढ़ते शोर से इंसानी जीन में गड़बड़, आंत के बैक्टीरिया, उठने-सोने की प्रक्रिया, कोशिकाओं की कार्य-कुशलता आदि भी प्रभावित देखी गई।
उनका कहना था कि COVID-19 महामारी खत्म होने पर यातायात साधनों के शोर से हानिकारक स्तर तक प्रभावित होने वाली आबादी का प्रतिशत फिर से बढ़ेगा।
इसलिए, भविष्य के सार्वजनिक स्वास्थ्य हेतु शोर रोकने और कम करने के कानून बनाना अत्यधिक महत्वपूर्ण है।
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