SARS-CoV-2 के नए रूप से अमेरिका, यूरोप, यूके, दक्षिण अफ्रीका, ब्राज़ील और जापान पर हुए घातक असर किसी से छुपे हुए नहीं है।
पूरी दुनिया अब इन वेरिएंट्स के खिलाफ एंटीबॉडी बनाने वाले COVID-19 टीकों से उम्मीद लगाए हुए है, लेकिन सेल (Cell) पत्रिका में प्रकाशित एक अध्ययन में विभिन्न संस्थानों से जुड़े खोजकर्ताओं के एक दल ने इसकी संभावना कम बताई है।
दल ने पाया कि Pfizer और Moderna COVID-19 टीकों से उत्पन्न सेल्स की रक्षा करने वाली एंटीबॉडीज़ (antibodies) ब्राजील, जापान और दक्षिण अफ्रीका में पहले मिले वायरस स्ट्रेंस के खिलाफ काफी कम प्रभावी थी।
इस मामले में दल ने पुराने और नए वायरस रूप के खिलाफ एंटीबॉडीज़ के असर को जानने के लिए HIV एंटीबॉडीज़ को मापने के अपने अनुभव का इस्तेमाल किया।
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जब उन्होंने टीके से मिली एंटीबॉडी का नए स्ट्रेंस पर परीक्षण किया तो उन्होंने पाया कि मूल SARS-CoV-2 वायरस की तुलना में दक्षिण अफ्रीका में पहली बार मिले तीन नए स्ट्रेंस एंटीबॉडीज के खिलाफ 20 से 40 गुना, और ब्राजील एवं जापान के दो स्ट्रेंस पांच से सात गुणा अधिक ताकतवर थे।
वायरस रोकने वाली एंटीबॉडी इनसे कसकर चिपक जाती है और कोशिकाओं में प्रवेश करने से रोक कर शरीर में संक्रमण नहीं फैलने देती। लेकिन ऐसा तभी संभव है जब एंटीबॉडी और वायरस का आकार एक दूसरे से पूरी तरह मेल खाए।
यदि वायरस का आकार बदलता है तो इसे रोकने वाली एंटीबॉडी वायरस को पहचानने और बेअसर करने में सक्षम नहीं हो सकती। इसी वजह से कोरोना के नए स्ट्रेंस की टीकों से मिलने वाली एंटीबॉडी के चंगुल से बच निकलने की संभावना है।
वर्तमान में, सभी मंजूरी प्राप्त COVID-19 टीके SARS-CoV-2 के स्पाइक प्रोटीन के खिलाफ शरीर को एंटीबॉडी सहित प्रतिरक्षा प्रतिक्रिया उत्पन्न करना सिखाकर काम करते है।
दल का कहना था कि हालांकि एंटीबॉडी को बेअसर करने वाली इन वेरिएंट्स की क्षमता चिंता का विषय है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि टीके COVID-19 महामारी को नहीं रोकेंगे। बस शरीर के एंटीबॉडी हिस्से को इनमें से कुछ नए वेरिएंट्स को पहचानने में परेशानी हो सकती है।