अगर आप हर रोज नॉनवेज खाने के शौकीन है, तो अब सावधान हो जाइए। इससे ऐसी बीमारियां भी होने का खतरा पाया गया है जिनके बारे में पहले सोचा नहीं गया था।
एक नए अध्ययन में नियमित मांसाहारियों को 25 गैर-कैंसर से जुड़ी विभिन्न बीमारियों के ज्यादा खतरे सामने आए, लेकिन लोहे की कमी से जुड़ी एनीमिया की आशंका कम थी।
बीएमसी मेडिसिन में प्रकाशित इस अध्ययन में अनप्रोसेस्ड रेड मीट (unprocessed red meat) जैसे बीफ, पोर्क, हॉर्स मीट, मटन और लैम्ब तथा प्रोसेस्ड मीट (processed meat) जैसे बेकन, सॉसेज, हॉट डॉग, हैम, पेपरोनी आदि खून में सैचुरेटेड फैटी एसिड की मात्रा बढ़ाकर बीमारी करने वाले एलडीएल कोलेस्ट्रोल को प्रभावित करते है।
शरीर पर इसके प्रभावों की जांच करने के लिए ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने चार लाख से ज्यादा ब्रिटिश पुरुषों और महिलाओं की मांस खाने की आदतों को आठ साल तक देखा।
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अध्ययन में जो लोग सप्ताह में तीन या अधिक बार मांस खाते थे, उन्हें ‘नियमित’ मांस खाने वाला माना गया।
रेड मीट खाने वालों की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव
ऐसे लोगों की सेहत पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ने की संभावना, हफ्ते में कम मांस खाने वालों की तुलना में, अधिक थी।
अध्ययन में पाया गया कि दोनों तरह के मांस ज्यादा खाने वालों में हृदय रोग, निमोनिया, पाचन स्थिति खराब रहने, कोलन और बाउअल कैंसर, डायबिटीज आदि का खतरा तो ज्यादा था, लेकिन एनीमिया का कम जोखिम था।
इसके अलावा, जो लोग ज्यादा पोल्ट्री उत्पाद जैसे चिकन, मुर्गा या टर्की अधिक खाते थे उनमें गैस बनना, सीने में जलन, खराब पाचन स्थिति, पथरी और डायबिटीज होने की अधिक संभावना थी, लेकिन उन्हें भी एनीमिया का खतरा कम था।
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नियमित मांसाहारियों का बीएमआई (BMI) भी बढ़ा हुआ था जो उनको जानलेवा बीमारियां होने की तरफ धकेल रहा था।
हालांकि, अध्ययन के परिणाम मांस की खपत से एनीमिया के कम खतरे बताते है, लेकिन मांस न खाने वाले इसकी कमी अन्य आहार स्रोतों या सप्लीमेंट के माध्यम से पूरी करें तो बेहतर होगा।
वर्ल्ड कैंसर रिसर्च फंड के मुताबिक, लोगों को खाने में लाल मांस प्रति सप्ताह लगभग 350 से 500 ग्राम पकाया हुए वजन तक ही सीमित रखना चाहिए।
साथ ही, बाजार में मिलने वाला पैकेटबंद प्रोसेस्ड मांस नहीं के बराबर ही खाना चाहिए।