अगर आप भी सेब, केले खरीदते समय उनके रंग और आकार को ज्यादा महत्व देते है तो जरा इस खबर को पढ़िए।
डेनिश और स्वीडिश शोधकर्ताओं के एक नए अध्ययन में इस बात का खुलासा हुआ है कि अधिकांश लोग फलों और सब्जियों की खरीदारी करते समय भावनाओं से ज्यादा प्रभावित होते है।
इसलिए वो ऐसे फलों या सब्जियों को नहीं चुनते जो आकार और रंग-रूप में उनकी भावनाओं से मेल न खाये।
शोधकर्ता चेतावनी देते है कि अगर हमें खाने की बर्बादी रोकनी है तो इस धारणा को बदलना होगा।
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उनका कहना है कि भूरे रंग के दाग लगे सेब या पके हुए पुराने केले खराब नहीं होते। लेकिन लोग अपनी कल्पना के अनुसार लाल रंग के साफ सेब और पीले रंग के चमकते केले को ही खरीदना पसंद करते है क्योंकि वो ऐसा मानते है कि केवल इन्हीं का स्वाद अच्छा होगा।
ऐसी सोच के चलते ही डेनमार्क में हर साल लगभग 7,16,000 टन भोजन फेंक दिया जाता है। इनमें अधिकांश फल और सब्जियां ऐसी होती है जिनका रंग-रूप और आकार उपभोक्ताओं को पसंद नहीं आता।
अध्ययन के खोजकर्ताओं का कहना है कि जब एक बेढब लगता फल फेंक दिया जाता है तो यह फूड वेस्ट का हिस्सा बन जाता है, जो आर्थिक रूप से एक बड़ी समस्या है।
यही कारण है कि हमें एक भूरे और विषम आकार के फल के बारे में अपनी भावनाओं को फिर से जांचने की आवश्यकता है।
खामियों वाले सेब को मिले कम खरीदार
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इससे जुड़े एक प्रयोग में शोधकर्ताओं ने 130 लोगों को सेब के अलग-अलग आकार और रंग की कई तस्वीरें दिखाई। अप्रत्याशित रूप से विकृति और खामियों वाले सेब को कम खरीदारों ने ही खाने की इच्छा जताई।
उसके बाद उन्हें एक बढ़िया क्वालिटी का लाल रंग के बजाए हरा सेब खाने को दिया गया। लेकिन अपने पहले अनुभव के आधार पर लोगों का मानना था कि इसका स्वाद बहुत बुरा होगा।
इस प्रयोग ने दिखाया कि हम नकारात्मक भावनाओं और अपेक्षाओं को सकारात्मक की तुलना में अधिक याद रखते है।
शोधकर्ता कहते है कि खाने की बर्बादी रोकने के लिए हमें फलों से जुड़ी इस तरह की मानसिकता को बदलना होगा। साथ ही यह भी पता लगाना होगा कि उपभोक्ताओं को इस बर्बादी को रोकने के लिए किस तरह से संदेश दिया जाए।