हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (hydroxychloroquine) और प्लाज्मा थेरेपी (convalescent plasma therapy) चिकित्सा द्वारा कोरोना वायरस (COVID-19) से पीड़ित गंभीर मरीजों के इलाज में कोई खास मदद नहीं मिली।
साथ ही, दोनों ही चिकित्सा मृत्यु दर कम करने में भी कारगर साबित नहीं रही।
न्यू इंग्लैंड जर्नल ऑफ मेडिसिन (New England Journal of Medicine) में प्रकाशित दो अध्ययनों में पाया गया कि COVID -19 उपचार के लिए कभी आशाजनक देखी गई लेकिन अब निरस्त हुई हाइड्रॉक्सीक्लोरोक्वीन (hydroxychloroquine) और प्लाज्मा थेरेपी (convalescent plasma therapy) ने संक्रमण को रोका या क्लिनिकल सुधार नहीं किया।
क्लीनिकल ट्रायल के दौरान, मार्च 17 से अप्रैल 28 तक COVID-19 रोगियों के 2,314 संपर्कों में से 1,116 को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वीन (hydroxychloroquine) और 1,198 को सामान्य देखभाल दी गई।
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दोनो समूहों में परिणाम समान थे, जिसमें हाइड्रोक्सीक्लोरोक्वाइन समूह के 5.7% और सामान्य देखभाल समूह के 6.2% प्रतिभागी सम्पर्क में आने के 14 दिनों के भीतर बीमार हो रहे थे, यानि दोनों को खतरा था।
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दूसरे अध्ययन में, अर्जेंटीना में हॉस्पिटल ग्वेनी डे ब्यूनस आयर्स (Hospital Italiano de Buenos Aires) के वैज्ञानिकों के नेतृत्व में एक शोध दल ने अस्पताल में भर्ती गंभीर निमोनिया और कम ऑक्सीजन के स्तर वाले 228 कोरोना वायरस संक्रमितों के परिणामों की तुलना की।
इसमें रोगियों को 105 प्लेसबो (placebo) प्राप्त रोगियों से 500 मिलीलीटर प्लाज्मा थेरेपी (convalescent plasma therapy) मिली थी।
30 दिनों में दोनों समूहों के बीच की क्लीनिकल स्थिति में कोई महत्वपूर्ण अंतर नहीं देखा गया।
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प्लेसीबो (placebo) प्राप्त करने वाले लोगों के समूह में मृत्यु दर 11.43 प्रतिशत थी और प्लाज्मा थेरेपी प्राप्त करने वाले समूह में मृत्यु दर 10.96 प्रतिशत थी। यानि प्लाज्मा थेरेपी (convalescent plasma therapy) से ना तो मरीजों के स्वास्थ्य में ज्यादा सुधार हुआ और ना ही वायरस के कारण होने वाली मृत्यु के जोखिम में कमी आई.
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“हमारे परीक्षण में,COVID-19 के कारण गंभीर निमोनिया के रोगियों में मानक उपचार के अलावा प्लाज्मा थेरेपी (convalescent plasma therapy) के उपयोग ने मृत्यु दर को कम नहीं किया और न ही प्लेसबो की तुलना में 30 दिन में अन्य क्लीनिकल परिणामों में सुधार हुआ,” लेखकों ने लिखा।