Fasting यानी उपवास रखने से कोलोरेक्टल कैंसर में कमी आ सकती है।
यह नवीन जानकारी लाइफ साइंस से जुड़ी चीन की एक कंपनी ने दी है।
फास्टिंग पर हुई कई स्टडीज की जांच ने कोशिकाओं में हुए सकारात्मक बदलाव से ट्यूमर विकास धीमा बताया है।
कंपनी के जांचकर्ताओं ने फास्टिंग से मरीजों के जीवित रहने की दर में 20% सुधार पाया है।
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उन्होंने कहा कि चूंकि कैंसर आनुवंशिक कारणों से भी होता है, इसलिए रोकथाम के लिए केवल लाइफस्टाइल बदलाव ही पर्याप्त नहीं हैं।
फास्टिंग शरीर में ऑटोफैगी (Autophagy) प्रक्रिया को सक्रिय करके कैंसर रोकथाम करती है।
यह ख़राब कोशिकाओं को हटाने और स्वस्थ कोशिकाओं को मजबूत करने की एक प्राकृतिक प्रक्रिया है।
फास्टिंग कैंसरकारी कोशिकाओं को मिटाकर शरीर के आंतरिक वातावरण को दुरुस्त रखने में मदद कर सकती है।
कई स्टडीज ने फास्टिंग को शरीर की असामान्य कोशिकाओं का पता लगाने और उन्हें नष्ट करने में सहायक कहा है।
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समय-प्रतिबंधित भोजन और फास्टिंग जैसी डाइट कीमोथेरेपी के दुष्प्रभावों को कम करने में भी सहायक है।
कुछ मामलों में फास्टिंग स्वस्थ कोशिकाओं की रक्षा एवं कैंसर को उपचार के प्रति अधिक कमजोर करती मिली है।
हालांकि, फास्टिंग के बाद फिर से भोजन करना जेनेटिक कैंसर वालों में ट्यूमर बनाना तेज कर सकता है।
इसलिए बिना एक्सपर्ट देखरेख के खासकर जेनेटिक प्रभावित मरीजों को फास्टिंग करने से बचना चाहिए।
खोजबीन में जांचकर्ताओं ने सभी तरह की फास्टिंग को कैंसर रोकथाम में असरदार पाया है।
इनमें 16 घंटे उपवास और 8 घंटे भोजन, 5 दिन सामान्य भोजन तथा 2 दिन कैलोरी प्रतिबंध, सप्ताह में एक या दो बार 24 घंटे उपवास, दिन की बजाए शाम को एक बार भोजन आदि शामिल हैं।
सभी तरीकों से कोशिकाओं की मरम्मत और सूजन में कमी करके कैंसर जोखिम घटाया जा सकता हैं।
हालांकि, फास्टिंग से कोलोरेक्टल कैंसर रोकने के लिए सिर्फ़ लाइफस्टाइल बदलाव ही काफी नहीं है।
आनुवंशिकी जोखिम वालों के लिए जेनेटिक स्क्रीनिंग (Genetic screening) करवाना भी आवश्यक है।
आजीवन बेहतर स्वास्थ्य के लिए लाइफस्टाइल बदलाव और आधुनिक तकनीक द्वारा कैंसर रोकथाम सर्वाधिक सुरक्षित है।
अधिक जानकारी के लिए, BGI Genomics में प्रकाशित खबर पढ़ सकते है।
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