वर्ष 2050 तक दुनिया भर में पार्किंसंस (Parkinson’s) रोग के दो करोड़ पचास लाख मरीज होने की संभावना है।
यह चौंकाने वाला खुलासा ब्रिटिश मेडिकल जर्नल में छपे एक लेख ने किया है।
चीन के स्वास्थ्य विशेषज्ञों की जांच पर आधारित लेख ने रोग का मुख्य कारण जनसंख्या की बढ़ती उम्र बताई है।
उन्होंने मरीजों की उपरोक्त अनुमानित संख्या वर्ष 2021 के मामलों की तुलना में 112 प्रतिशत अधिक पाई है।
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ऐसा अनुमान है कि पार्किंसंस रोग के सबसे अधिक मामले पूर्वी एशिया (10.9 मिलियन) में होंगे।
उसके बाद दक्षिण एशिया (6.8 मिलियन) का स्थान होगा। ओशिनिया और आस्ट्रेलिया में सबसे कम मामले मिलने की संभावना है।
अनुमान मुताबिक, वर्ष 2050 में 80 वर्ष से अधिक के लोगों सबसे अधिक प्रभावित (प्रति 100,000 पर 2087 मामले) होंगे।
वैश्विक स्तर पर पुरुषों और महिलाओं के बीच मामलों का अंतर भी वर्ष 2021 के 1.46 से बढ़कर 2050 में 1.64 हो जाएगा।
पार्किंसंस रोग एक न्यूरोडीजेनेरेटिव विकार है, जिसमें व्यक्ति की हरकतें और शारीरिक संतुलन लगातार प्रभावित होते हैं।
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इस स्थिति से प्रभावित के बोलने, याददाश्त और व्यवहार में भी समस्या पैदा हो सकती है।
रोग के लक्षणों में शरीर के कुछ हिस्सों में कंपन और मांसपेशियों में अकड़न शामिल है।
2022-2050 के दौरान रोग को बढ़ाने वाले कारणों का अनुमान लगाने के लिए विशेषज्ञों ने ग्लोबल बर्डन ऑफ डिजीज स्टडी 2021 के आंकड़ों सहित 195 देशों और क्षेत्रों में पार्किंसंस रोग की व्यापकता का विश्लेषण किया था।
हालांकि, उन्होंने शारीरिक गतिविधि बढ़ाने से भविष्य में पार्किंसंस मामलों की संख्या कम होने की संभावना भी जताई है।
प्रस्तुत अनुमान स्वास्थ्य अनुसंधान को बढ़ावा देने, नीतियां बनाने और संसाधनों को आवंटित करने में सहायता दे सकते है।
परिणाम भविष्य में शोध की तत्काल आवश्यकता पर जोर डालते है, ताकि रोगियों के जीवन में सुधार के लिए नई दवाओं, जीन इंजीनियरिंग तकनीकों और सेल प्रतिस्थापन चिकित्सा के विकास पर ध्यान केंद्रित किया जा सके।
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