World Obesity Day: दुनिया भर में लाखों लोगों को प्रभावित करने वाला मोटापा एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है।
अभी तक खराब आहार और एक्सरसाइज में कमी ही मोटापे का प्रमुख कारण माने गए है।
लेकिन अब जर्मन वैज्ञानिकों की एक स्टडी ने इस बारे में कुछ चौंकाने वाले खुलासे किए है।
नई स्टडी ने मोटापे, इंसुलिन और दिमागी फंक्शन के बीच गहरा संबंध बताया है।
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नतीजों के अनुसार, खान-पान में थोड़े समय के बदलाव से भी दिमाग में इंसुलिन सेंसिटिविटी घट जाती है।
इससे प्रभावितों में मोटापा और टाइप 2 डायबिटीज होने का खतरा बढ़ने लगता है।
ज्यादा बॉडी फैट और लगातार बढ़ता वज़न इंसुलिन के प्रति दिमाग की प्रतिक्रिया कमजोर करते है।
यहां तक की जंक फ़ूड का थोड़ा सा सेवन भी स्वस्थ व्यक्तियों के दिमाग में महत्वपूर्ण परिवर्तन लाता है।
यह नकारात्मक परिवर्तन उनमें मोटापे और डायबिटीज का प्रारंभिक कारण हो सकता है।
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स्वस्थ इंसुलिन दिमाग में पेट भरने का संकेत भेजता है, लेकिन मोटापा पीड़ितों में इंसुलिन सेंसिटिविटी घट जाती है।
इंसुलिन सेंसिटिविटी घटने पर कोशिकाएं ब्लड शुगर कंट्रोल करने वाले इंसुलिन का बेहतर उपयोग नहीं कर पाती है।
स्टडी में, थोड़े समय अधिक खाने वाले स्वस्थ इंसानों के दिमाग में इंसुलिन सेंसिटिविटी मोटापा पीड़ितों समान कम थी।
संतुलित आहार पर लौटने के एक सप्ताह बाद भी उन लोगों में यह दुष्प्रभाव देखा जा सकता था।
वैज्ञानिकों को उपरोक्त जानकारी 29 सामान्य वजन वाले पुरुषों की स्वास्थ्य जांच से प्राप्त हुई थी।
एमआरआई का उपयोग करते हुए उन्होंने अधिक कैलोरी लेने वालों के लिवर फैट में उल्लेखनीय वृद्धि देखी।
इसके अलावा, सामान्य आहार लेने के बावजूद उनके दिमाग में इंसुलिन सेंसिटिविटी बहुत कम थी।
इंसुलिन सेंसिटिविटी में कमी से जुड़ा यह दुष्प्रभाव पहले केवल मोटे लोगों में ही पाया गया था।
निष्कर्ष में थोड़े समय के लिए भी आहार संबंधी गड़बड़ी का शरीर पर दीर्घकालिक प्रभाव बताया गया है।
यह देखते हुए आजीवन स्वस्थ खान-पान अपनाने की आदतों के महत्व का पता चलता है।
गौरतलब है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने मोटापे को एक महामारी कहा है, जिससे दुनिया भर में एक अरब से अधिक लोग पीड़ित है।
मोटापे से जुड़ी स्वास्थ्य समस्याओं में डायबिटीज से लेकर हार्ट अटैक और कुछ कैंसर तक शामिल हैं।
इस बारे में विस्तारपूर्वक जानकारी नेचर मेटाबॉलिज्म जर्नल में छपी स्टडी से मिल सकती है।
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