Air Pollution Effects: कई अध्ययनों में PM2.5 के प्रदूषण से मानसिक विकारों का खतरा देखा गया है।
PM2.5 में मौजूद अति महीन प्रदूषित कण खून में मिलकर दिमाग तक पहुंच जाते है।
इससे कई न्यूरोडीजेनेरेटिव रोगों के विकास की संभावित स्थिति बनने लगती है।
इस बारे में यूएस स्वास्थ्य विशेषज्ञों की हालिया स्टडी ने नए सबूत जुटाए है।
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स्टडी ने अधिक वायु प्रदूषण में रहने से पार्किंसंस रोग (Parkinson disease) के जोखिम में वृद्धि बताई है।
गौरतलब है कि सेंट्रल नर्वस सिस्टम से जुड़े पार्किंसंस रोग में हाथ-पैर कांपने लगते है।
यह रोग 70 वर्ष और अधिक आयु की आबादी के 2% हिस्से को प्रभावित करता है।
पार्किंसंस रोग पीड़ितों की संख्या अगले 20 वर्षों में तीन गुना होने का अनुमान है।
नवीन स्टडी में पार्किंसंस रोग के 346 रोगी और 4,813 स्वस्थ व्यस्क शामिल थे।
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उनके हेल्थ डाटा की जांच में PM2.5 की अधिकता वालों को पार्किंसंस का जोखिम अधिक था।
यह जोखिम कम PM2.5 की अपेक्षा अधिकता वाले महानगरों की आबादी में सर्वाधिक पाया गया।
यही नहीं, नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2) के अधिक संपर्क से भी रोग का जोखिम बढ़ा हुआ था।
NO2 और PM2.5 के अधिक संपर्क से केवल पार्किंसंस मरीजों में डिस्केनेसिया (अनचाहे मूवमेंट) का अधिक खतरा था।
पार्किंसंस रोकथाम के लिए स्टडी ने वार्षिक PM2.5 की अधिकतम सीमा 8 μg/m3 करने की सिफारिश की।
हालांकि, विश्व स्वास्थ्य संगठन ने यह सीमा 5 μg/m3 तक निर्धारित करने की आवश्यकता कही थी।
यूएस के कई स्वास्थ्य संस्थानों की यह साझा स्टडी JAMA नेटवर्क ओपन में प्रकाशित हुई थी।
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