युवावस्था के डिप्रेशन (Depression) से बाद के जीवनकाल में सोचने और याददाश्त समस्याओं से जुड़ा डिमेंशिया (Dementia) हो सकता है।
यह जानकारी अंतर्राष्ट्रीय स्वास्थ्य विशेषज्ञों की एक टीम ने उनकी नई स्टडी में दी है।
हालांकि, स्टडी में शामिल श्वेत वयस्कों की अपेक्षा अश्वेतों में डिप्रेशन ज़्यादा पाया गया था।
ताज़ा जानकारी अमेरिकन एकेडमी ऑफ न्यूरोलॉजी के मेडिकल जर्नल ‘न्यूरोलॉजी’ से मिली है।
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जर्नल के अनुसार, लंबे समय तक डिप्रेशन में रहने से मानसिक रोग डिमेंशिया की शुरुआत हो सकती है।
बता दें कि इंसानों में इस बीमारी के लक्षण स्पष्ट होने से बहुत पहले ही शुरू हो जाते हैं।
नई स्टडी में शामिल 3,117 पुरुषों और महिलाओं में 47% अश्वेत और 53% श्वेत थे।
स्टडी शुरुआत में उनकी औसत आयु 30 वर्ष थी। 20 वर्षों की स्टडी के दौरान, हर पाँच साल में उनके डिप्रेशन लक्षण जांचे गए।
हर बार उन्होंने एक प्रश्नावली द्वारा अपनी भूख या नींद में बदलाव, एकाग्रता में समस्या, उदासी या अकेलेपन की भावनाएँ बताई।
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55 वर्ष की आयु होने पर उनकी सोचने और याददाश्त संबंधी कौशल जानने के लिए तीन परीक्षण किए गए।
इस दौरान, सभी की आयु, शारीरिक गतिविधि, ब्लड प्रेशर, और कुल कोलेस्ट्रॉल आदि को भी ध्यान में रखा गया।
युवावस्था के डिप्रेशन से श्वेत प्रतिभागियों की अपेक्षा अश्वेतों की याददाश्त सहित सोचने-समझने की क्षमता में गिरावट थी।
अश्वेतों में अधिक डिप्रेशन लक्षण दिखने की वजह रंगभेद, सामाजिक-आर्थिक असमानता, हेल्थ केयर और इलाज में कमी हो सकते थे।
टीम का मानना था कि नतीजे वृद्धावस्था में होने वाले डिमेंशिया रोग के कुछ कारणों को समझाने में मदद कर सकते है।
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